हरदोई, निज प्रतिनिधि : प्रथम स्वाधीनता संग्राम का जिक्र आते ही जो नाम जेहन में आता है वह है क्रांतिकारी मंगल पांडेय का। अंग्रेजी सेना के इस जवान ने ही बगावत कर क्रांति का बिगुल फूंक दिया था, मगर बहुत कम लोगों को ही पता है कि मेरठ छावनी में जिस खून ने उबाल मारा था, वह हरदोई जनपद के ग्राम बाबरपुर का था।
1857 में 31 मई का दिन पहली क्रांति के लिए तय किया गया था, लेकिन अंग्रेजों की सेना में तैनात भारतीय सिपाहियों का सब्र उत्पीड़न के चलते जवाब दे गया और निर्धारित तारीख से 21 दिन पहले ही 10 मई को मेरठ से बगावत की चिंगारी निकली। अधिकतर इतिहास की किताबों में मंगल पांडेय को बलिया जनपद का निवासी बताया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि मंगल पांडेय मूलरूप से हरदोई जनपद के पाली थाना क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम बाबरपुर के रहने वाले थे। यहां इससे संबंधित कई प्रमाण भी मिलते हैं। धर्मेद्र सिंह सोमवंशी द्वारा लिखी गई हरदोई का स्वतंत्रता संग्राम एवं सेनानी के भाग एक में इस बात का जिक्र किया गया है कि मंगल पांडेय बाबरपुर के रहने वाले थे।
इस सबसे इतर बाबरपुर में अब भी मंगल पांडेय का पैतृक निवास है जो कि खंडहर हो चुका है और इसमें महज दो दीवारे ही शेष हैं। गांव के 75 वर्षीय बुजुर्ग जगदीश त्रिवेदी बताते हैं कि उनके बाबा बालकराम त्रिवेदी मंगल पांडेय के सगे भाई देवीदयाल पांडेय के करीबी दोस्त थे। जब मंगल पांडेय ने मेरठ में बगावत की तो यहां अंग्रेजी सेना के अफसर भी पूछताछ के लिए आए थे और तब देवी दयाल पांडेय को गांव में छिपा कर, मंगल पांडेय का यहां से कोई रिश्ता न होने की बात कही गई थी।
बाबरपुर में ही रहने वाले प्रकाश नरायन दीक्षित कहते हैं कि जब अंग्रेज अफसर पूछताछ के बाद वापस लौट गए तो गांव वालों ने देवी दयाल से आग्रह किया था कि वे परिवार सहित कहीं और रहने चले जाएं। इस आग्रह को गांव के हित में उन्होंने मान भी लिया था। गांव के कृष्ण चंद्र दीक्षित भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि मंगल पांडेय बाबरपुर की गलियों में ही अपना बचपन गुजार कर गए थे।
खो गया एक महत्वपूर्ण अभिलेख
शाहाबाद तहसील में वकालत करने वाले बाबरपुर के पूर्व प्रधान कृष्ण स्वरूप दीक्षित की मानें तो वर्ष 1913 तक शाहाबाद में मुंसिफी थी। उस दौरान गांव में भूमि को लेकर एक निर्णय दिया गया था, जिसमें देवी दयाल पांडेय और मंगल पांडेय का जिक्र भी था। उन्होंने उक्त स्थान पर मंगल पांडेय की मूर्ति स्थापित कराने की मांग को लेकर उक्त दस्तावेज वर्ष 1989 में तत्कालीन प्रदेश के शिक्षा मंत्री रहे डा. अशोक बाजपेई को दिया था। डा. बाजपेई ने उक्त अभिलेख तत्कालीन उप जिलाधिकारी संजीव कुमार को दे दिए थे, लेकिन मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाई। साथ ही वे अभिलेख भी गायब हो गए।
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